चलो आज फिर बैठते हैं
उस किनारे पर, उसकी ख़ामोशी में
जो हमारा हमसाया था
दो बातें होती थीं
दिल कहीं घूम आता था
कभी आपके झरोखों से
कभी हमारे एहसासों से
कुछ यादें नयी हो आती थीं
और कुछ यादें बन जाती थीं
जब वो दिन बीत जाता था
प्यार था, या यूँ ही एक लगाव था
जानना कभी ये जरूरी लगा ही नहीं
वो साथ होने का एहसास
ही सब कुछ था हमारे लिए
अपना जीवन तो कभी देखा ही नहीं
न ही एक दूसरे की तलाश की
लगता था सब देखा जाना है
साथ होने का वो एहसास
आज भी जिन्दा है
दिल आज भी टहलने जाता है
उन दरख्तों के बीच
चलो कुछ वक़्त निकाल कर
उन यादों को फिर से जीते हैं..
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